सरकारों का संयम किसानों की हिम्मत पर पड़ गया भारी, हरियाणा में खून-खराबे के दाग से बचा रहा आंदोलन

सरकारों का संयम किसानों की हिम्मत पर पड़ गया भारी, हरियाणा में खून-खराबे के दाग से बचा रहा आंदोलन

सरकारों का संयम किसानों की हिम्मत पर पड़ गया भारी

सरकारों का संयम किसानों की हिम्मत पर पड़ गया भारी, हरियाणा में खून-खराबे के दाग से बचा रहा आंदोलन

चंडीगढ़। एक साल 14 दिन तक आंदोलन को लंबा खींचने की जितनी हिम्मत किसान संगठनों ने की, उससे कहीं अधिक संयम का परिचय केंद्र व राज्य सरकार ने दिया है। हरियाणा में अब तक की सबसे लंबी अवधि के इस आंदोलन में कोई ऐसी हिंसा नहीं हुई, जिसकी वजह से केंद्र अथवा हरियाणा सरकार के माथे पर किसी तरह का दाग लग सके। करनाल के बस्ताड़ा चौक पर हुआ लाठीचार्ज इसमें अपवाद है, लेकिन लाठीचार्ज के दोषी आइएएस अधिकारी आयुष सिन्हा को निलंबित कर प्रदेश सरकार पूरे मामले की जांच के लिए जस्टिस एसएन अग्रवाल के नेतृत्व में एक जांच आयोग बना चुकी है।

किसान संगठनों का आंदोलन खत्म होने के बाद अब जस्टिस एसएन अग्रवाल आयोग हालांकि कुछ दिनों तक काम करता रहेगा, लेकिन पूरे विवाद पर मिट्टी डालने की मंशा से देर-सबेर इस आयोग की रिपोर्ट में देरी हो सकती है। अब जबकि किसान संगठनों की तमाम मांगें मानी जा चुकी हैं और वह अपने घरों को लौटने के लिए तैयार हो गए, ऐसे में प्रदेश सरकार की मंशा किसी तरह का नया विवाद खड़ा करने की नहीं होगी। किसान संगठनों का आंदोलन खत्म होने के बाद सत्तारूढ़ भाजपा व उसकी सहयोगी जननायक जनता पार्टी के नेताओं के साथ-साथ उद्योगपतियों, बार्डर के आसपास रहने वाले लोगों व कारोबारियों तथा दिल्ली से आवाजाही करने वाले यात्रियों को बड़ी राहत मिली है।

हरियाणा की भाजपा सरकार के सात साल के कार्यकाल में कई बड़े आंदोलन हुए, लेकिन यह पहला ऐसा आंदोलन है, जिसमें किसानों के साथ-साथ सरकार ने पूरे समय संयम बरते रखा। किसानों पर न तो लाठी चलाई गई और न ही गोली का इस्तेमाल किया गया है। राज्य का इतिहास है कि कोई भी आंदोलन बिना लाठी या गोलीकांड के खत्म नहीं हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल, भजनलाल, ओमप्रकाश चौटाला और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार में विभिन्न मुद्दों को लेकर बड़े किसान आंदोलन चले, लेकिन मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अपनी सरकार के कार्यकाल में हुए पिछले कई आंदोलनों से सबक लेकर इस बार पूरी सूझबूझ तथा मजबूत रणनीति का अहसास कराया है।

हरियाणा में जब भाजपा की सरकार आई थी, तब रोहतक के करौंथा आश्रम के संचालक रामपाल को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करने के मामले में काफी खून-खराबा हुआ था। इसके बाद राज्य में जाट आरक्षण आंदोलन हुआ, जिसमें काफी बवाल कटा। यह आंदोलन टुकड़ों में कई बार चला, जिसमें 31 लोग मारे गए थे। फिर डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कराया गया, जिसमें हुए खून-खराबे के दौरान 46 लोगों की जान गई थी। इस बार जितनी शांति से यह आंदोलन निपटा है, उसे लेकर मुख्यमंत्री मनोहर लाल, उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला और गृह मंत्री अनिल विज के कौशल तथा संयम की सराहना की जा रही है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने भी संगठन के नाते किसानों व सरकार के बीच धुरी बनने में अहम भूमिका निभाई है।